फेसबुक, ट्विटर और मधेश आन्दोलन

विक्रम जैन
विक्रम जैन, विरगंज

पिछले २-३ वर्षो में इंटरनेट ने तेजी से युवाओ जोड़ने का काम किआ है , नेपाल में भी इंटरनेट का विकास तेजी से  रहा है खास करके ट्विटर और फेसबुक जैसे सामाजिक सञ्जाल युवाओ में काफी लोकप्रिय हो रहे है  , अब यूवा आसानी से अपनी बाते ,अपना विचार लोगो से शेयर कर सकते है।

जहा १ तरफ ये अच्छी बात है वही दूसरी तरफ़ कई लोग इसका गलत इस्तमाल कर रहे है ,ख़ास करके पिछले १० -१२  दिनों से लोग बिना कुछ सोचे समझे मधेशीयों और मधेश आन्दोलन को लक्षित कर रहे है ( मैं यहाँ आन्दोलन के समर्थक और विरोधी दोनों की बाते कर रहा हु ) ।

इसमें कोई दो मत नहीं है की समाजिक सञ्जालो पर हमेशा मधेशीयों के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया जाता है ,जहा कुछ लोग इस अभद्रता को सह कर इग्नोर करते है ,कुछ लोग फैक्ट्स देकर विरोध करते है और कुछ उसी अभद्रता का इस्तेमाल करते है ,हालांकि फैक्ट्स पे बात करने वालो की सकंख्या बहुत ही कम है ।

राष्ट्रभक्त कौन ?

आजकल फेसबुक और ट्विटर में एक जंग सी छिड़ी हुई है ,सब देशभक्ति को अपने तरीके से व्याख्या करने में लगे हुए है ।

कुछ लोग #Backoffindia कह कर अपनी देशभक्ति दिखा रहे है, कुछ चीन से समझौता करने की बाते कर रहे है ,कुछ साईकल चढ़ने की बाते भी कर रहे है ।

तो क्या देश भक्ति यही है ?

जी नहीं ! देशभक्ति की परिभाषा  इतनी सकुञ्चित हो ही नहीं सकती , जब  देश की आधी आबादी शोक में डूबी हुई थी तब देश के  तथाकथित राष्ट्रवादी दीपावली मना रहे थे , वो कहते है न ,”धर्मो रक्षति रक्षितः ” धर्म उसकी रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करते है , देशभक्त वही है जो देशवासियो का सम्मान करता है ।

तथाकथित देशभक्त क्या कर रहे है :

  • देशभक्त नाकाबंदी का विरोध करने के लिए सड़क पे आते है मगर अपने मधेसी भाइयो की शाहदत पर २ मिनट का मौन तक नहीं रख्ते
  • देशभक्त एकता और समावेशीकरण की बाते करते है मगर कोई मधेशी मिल जाए तो उसे धोती कह कर सम्बोधित करते है
  • देशभक्त तो सिर्फ काठमाण्डू में रहते है, २ दिन काठमाण्डू में असर की चिन्ता है , ४३ दिनों से मधेश बंद है उसकी कोई परवाह नहीं

तो सही क्या ?

में किसी विशेष सम्प्रदाय या  व्यक्ति को दोष नहीं दे रहा , में तो बस उस  व्यवस्था को प्रश्न कर रहा हु जो पिछले २५० वर्षो से हमारा शोषण कर रही है ।

मुझे आज भी याद है कैसे नागरिकता लेते वक़्त सरकारी कर्मचारी ने भेदभाव किया  था , आज भी याद है की  कैसे भाषा के आधार पे मेरी देशभक्ति तौली गयी थी।

डा.बाबुराम भट्टराई ,सी.के.लाल ,दीपेन्द्र झा और देश के कई बुद्धिजीवी यह मानते है की मौजूदा संविधान मधेशी और थारुओ की भावनाओ को समेटने में नाकाम रहा है , कई सभासदो ने भी ये स्वीकारा है, तो क्यों ना हम आन्दोलन को एक नया रूप दे और इस क्रान्ति को नए तरीके से देश के ,मधेश के विकास में लगाए।  फेसबुक और ट्विटर में बिना कुछ सोचे समझे लिखने वाले सभी मित्र चाहे वो मधेशी हो या पहाड़ी या और कोई से विनम्र निवेदन है की वो भद्र भाषा का प्रयोग करे और फैक्ट्स पर  आधारित बाते करे , राष्ट्रियता के नाम पे उत्पात नहीं मचाए।  मधेशी युवाओ से भी अनुरोध है की वो मधेश आन्दोलन की गहराई को समझे और लोगो को जागरूक करने का काम करे क्योंकि हम सबको पता है हमारे नेता कैसे है ,भविष्य में इस आन्दोलन को हमे मधेश  और देश के विकास का आधारभूत बनाना है।

जय देश !! जय मधेश !!